BIG NEWS : PG कॉलेज में भारतीय ज्ञान परंपरा-विविध संदर्भ पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन, प्रो. शीला रॉय ने कहां- भारतीय ज्ञान परंपरा को मुगल शासको ने किया तहस-नहस, पढ़े खबर
PG कॉलेज में भारतीय ज्ञान परंपरा
नीमच। उच्च शिक्षा विभाग, मध्य प्रदेश शासन, भोपाल के निर्देशानुसार एवं प्राचार्य डॉ. के.एल. जाट के निर्देशन में स्थानीय अग्रणी महाविद्यालय स्वामी विवेकानंद शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन दिनांक 27 मई 2024 को कियाl यह वेबीनार भारतीय ज्ञान परंपरा-विविध सन्दर्भ विषय पर आधारित थाl वेबिनार के उदघाटन सत्र में अतिथि वक्ता परिचय वेबिनार के संयोजक डॉ. महेंद्र कुमार शर्मा द्वारा दिया गया, जबकि स्वागत उद्बोधन प्राचार्य डॉ. प्रशांत मिश्रा द्वारा दिया।
इस वेबिनार में प्रथम वक्ता प्रो. शीला राय, पूर्व प्रोफ़ेसर राजनीति विज्ञान, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर ने अपने उद्बोधन के माध्यम से बताया कि, भारतीय ज्ञान परंपरा प्राचीन समय से ही बहुत समृद्धि और उन्नत थी l स्वतंत्रता के बाद से भारत में केवल पाश्चात्य राजनीतिक विचारकों को ही पढ़ाया जाता था, लेकिन 20 वर्ष पहले राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर में पहली बार महाविद्यालय स्तर पर स्नातक प्रथम वर्ष में मनु, कौटिल्य और शुंग जैसे भारतीय राजनीतिक विचारकों का अध्ययन अध्यापन प्रारंभ किया। जिससे प्राचीन भारतीय साहित्य संगम को समझ कर भारतीय ज्ञान परंपरा का अध्ययन करना एवं उसको ग्रहण करना जिससे पूरे विश्व का कल्याण हो सकेl
दूसरे वक्ता आदरणीय प्रो. डी.पी. मिश्रा, प्रोफ़ेसर एयरोस्पेस इंजीनियरिंग, आईआईटी, कानपुर ने अपने उद्बोधन में भारतीय ज्ञान परंपरा और पश्चात ज्ञान परंपरा पर तुलनात्मक विचार प्रस्तुत किया। वर्तमान में भारतीय ज्ञान परंपरा का अध्ययन करने और उसको अर्जित करने की इच्छा लोगों में नहीं है। वर्तमान में मानव जाति पश्चात ज्ञान के आधार पर आसुरी ज्ञान को प्राप्त कर धरती को खत्म करने में लगी हुई हैं। जिसके कारण कई समस्या एवं बीमारियों का जन्म हुआ l साथ ही विकास के नाम पर धरती को बंजर बना दिया और नदियों को नलों में बदल दिया गया l इस प्रकार पूरे मानव मन को प्रदूषित कर दिया गया, जिसके जिम्मेदार हम स्वयं ही हैं l
इसलिए वर्तमान समय में भारतीय ज्ञान परंपरा को नवीन शिक्षा पद्धति से जोड़ते हुए अध्ययन एवं अध्यापन का कार्य किया जाना बहुत ही आवश्यक है l अंतिम वक्ता डॉ. निक्की चतुर्वेदी, एसोसियट प्रोफ़ेसर और विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर ने भारतीय ज्ञान परंपरा पर अपने विचार रखते हुए बताया, कि परंपरा वह है, जो निरंतर चलती रहती है वह जड़ नहीं रहती है l आपने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से बताया, कि लोक ज्ञान की उपादेयता स्थानीय स्तर से ही जुड़ी होती है इसलिए लोक ज्ञान परंपरा को राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सम्मिलित किया जाना चाहिए l इस वेबिनार में राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों से लगभग 300 प्राध्यापकों, शोधर्थियों एवं प्रतिभागियों ने सहभागिता की l जिसमे 20 शोधर्थियों ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया l
शोधार्थी डॉ. मोहित दीक्षित ने अपना शोध पत्र पीपीटी के माध्यम से प्रस्तुत किया l अंत में सहभागिता कर रहे शोधार्थियों की जिज्ञासाओं का समुचित समाधान अतिथि वक्ताओं द्वारा किया गया l उक्त कार्यक्रम को महाविद्यालय के यूट्यूब चैनल पर लाइव प्रसारित किया l इस कार्यक्रम के दौरान प्रो. राकेश कुमार कासवा, डॉ. अशोक लक्षकार, प्रो. अशोक प्रजापत, प्रो. राजेंद्र सिंह सोलंकी ने तकनिकी सहयोग प्रदान किया l उक्त वेबीनार का संचालन प्रो. भुनेश अम्बवानी द्वारा किया गया और अतिथि वक्ताओं, प्राध्यापकों एवं शोधर्थियों का आभार प्रदर्शन क्रीड़ा अधिकारी संजीव थोरेचा द्वारा ज्ञापित किया।