NEWS : नीमच के मेडिकल कॉलेज में रेबीज सीएमई संपन्न, उपचार एवं रोकथाम के संबंध में दी जानकारी, डॉ. निशांत गुप्ता ने दिए व्याख्यान, पढ़े खबर

नीमच के मेडिकल कॉलेज में रेबीज सीएमई संपन्न

NEWS : नीमच के मेडिकल कॉलेज में रेबीज सीएमई संपन्न, उपचार एवं रोकथाम के संबंध में दी जानकारी, डॉ. निशांत गुप्ता ने दिए व्याख्यान, पढ़े खबर

नीमच। रेबीज एक संक्रमण है, जो आपके मस्तिष्क और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। यह एक प्रकार के वायरस के कारण होता है, जिसे लाइका वायरस कहा जाता है। आपको संक्रमित जानवर के काटने या खरोंचने से रेबीज़ हो सकता है। बहुत ही दुर्लभ मामलों में, रेबीज़ का संक्रमण अंग प्रत्यारोपण से भी हो सकता है। वीरेंद्र कुमार सखलेचा मेडिकल कॉलेज में बुधवार को रेबीज के इलाज एवं रोकथाम के लिए सीएमई (सतत चिकित्सा शिक्षा) सीएमई मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. अरविंद घंगोरिया के मार्गदर्शन में आयोजित की। 

जिसके वक्ता डॉ. निशांत गुप्ता एमडी (कंम्यूनिटी मेडिसिन) रहे, डॉ. गुप्ता ने अपने व्याख्यान में बताया कि, डॉग बाईट एवं अन्य जानवर के काटने से रेबीज की बीमारी फैलती है। जो 100 प्रतिशत घातक रोग है। मनुष्यों में रेबीज़ लगभग हमेशा घातक नहीं होता। लेकिन शीघ्र उपचार से संक्रमण को बढ़ने से रोका जा सकता है। रेबीज पूरी तरह से रोकी जा सकने वाली बीमारी है, लेकिन समय पर इलाज न होने पर यह जानलेवा साबित हो सकती है। रेबीज से संक्रमित होने के बाद किसी व्यक्ति में छूने और सुनने की क्षमता प्रभावित होना, असामान्य व्यवहार, मतिभ्रम, हाइड्रोफोबिया (पानी का डर) और अनिद्रा (नींद में कठिनाई) जैसे गंभीर परिणाम नजर आ सकते हैं, जो उसे कोमा में ले जा सकते हैं, और मौत का कारण बन सकते हैं। 

किसी भी समय अगर किसी व्यक्ति को कुत्ते, बंदर, गीदड़, लोमड़ी आदि काट ले और वह रेबीज से पीड़ित हो तो वह व्यक्ति की जान पर भारी पड़ सकता है। रेबीज के लिए चार श्रेणी बनाई गई है। जिसमे स्वास्थ्य विभाग की तरफ से रेबीज से संक्रमित कुत्ते या बंदर के काटे मरीजों के लिए चार श्रेणी बनाई गई हैं। इनमें व्यक्ति की चमड़ी पर रेबीज पीड़ित कुत्ते या बंदर की लार गिर जाए या उस पर खरोच लग जाए, उसे पहली श्रेणी में शामिल किया है। 

कुत्ते के काटने पर हल्का खून आने पर दूसरी श्रेणी में, मुंह व हाथ से अलग स्थान पर काटने से हुए जख्म वाले मरीज को तीसरी व मुंह तथा हाथ पर काटने वाले मरीज को चौथी श्रेणी में शामिल किया है। तीसरी व दूसरी श्रेणी में आने वाले मरीज को तो जितना जल्दी हो सके वैक्सीन लगवानी चाहिए। बंदर या कुत्ते के काटे हुए स्थान को कम से कम 10 से 15 मिनट तक साबुन से साफ करना चाहिए। जितना जल्दी हो सके एआरवी यानी एंटी रेबीज वैक्सीन लगवाएं। पालतू कुत्तों को इंजेक्शन लगवाएं। काटे हुए जख्म पर मिर्च ना बांधे। घाव पर टांके न लगवाएं, पट्टी ना बांधें।

साथ ही डॉ. गुप्ता ने बताया की जिला चिकित्सालय नीमच में इसकी रोकथाम के लिए रेबीज के इंजेक्शन सिविल सर्जन डॉ. महेंद्र पाटिल के मार्गदर्शन में नि:शुल्क लगाए जाते है। आयोजित सीएमई मे 100 से अधिक डॉक्टरों, नर्स एवं अन्य लोगो ने भाग लिया एवं रेबीज के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की।