NEWS : कर्मकाण्डीय विप्र परिषद नीमच,द्वारा हुई भूतेश्वर महादेव मै प्रेस वार्ता,आने वाली 1 नवम्बर पर दीवाली मुहर्त की दी जानकारी, पढ़े खबर
कर्मकाण्डीय विप्र परिषद नीमच,
नीमच। नीमच क्षेत्र की व्रत और त्यौहार के विषय में शास्त्रोक्त और प्रमाणिक निर्णय देने वाली विश्वसनीय संस्था श्री कर्मकाण्डीय विप्र परिषद के विद्वतजनों एवं नीमच के समस्त ज्योतिषाचायौँ, पुरोहितों आदि द्वारा धर्मसिन्धु और निर्णयसिन्धु एवं नीमच के अक्षांश रेखांश के आधार पर शास्त्रोक्त निर्णय लेते हुए यह सुनिश्चित किया गया कि नीमच जिले में 1 नवम्बर को दीपावली पर्व मनाया जाएगा।
सप्त दिवसीय दीपावली पर्व इस प्रकार मनाया जाएगा -
28 अक्टूबर, सोमवार गौवत्स द्वादशी
29 अक्टूबर, मंगलवार को धनतेरस
30 अक्टूबर, बुधवार को मासशिवरात्रि एवं नरक चतुर्दशी
31 अक्टूबर, गुरूवार को रूप चतुर्दशी व छोटी दीपावली
1 नवम्बर, शुक्रवार को दीपावली महालक्ष्मी पूजन
2 नवम्बर, शनिवार को गोवर्धन पूजा व अन्नकूट
3 नवम्बर, रविवार को भाई दूज व विश्वकर्मा पूजा
श्री महालक्ष्मी पूजा शुभ मुहूर्त
संवत 2081 कार्तिक कृष्ण सब्जी शुक्र दि. 1 मार्च 2024 प्रीति-आयुष्मान योग एवं स्वाति नक्षत्रों से समन्वित दीपोत्सव के पावन अवसर पर सर्वे भवन्तु सुखिनः.... की शुभकामनाएँ प्रतिष्ठा करते कर्मकाण्डीय विप्र परिषद् नीमच के सभी मंडलों की ओर से अध्य यक्ष पं. इलाहबाद उपाध्याय प्रतिष्ठाचार्य व आद्य पुजारी स्वयंसिद्ध विनायक मंदिर गणेश नीमच केंट ने बताया कि इस बार दीपावली पर्व सप्ताह मनाया जाएगा। 28 अक्टूबर को गौवत्स द्वादशी, 29 अक्टूबर को तेरस, 30 अक्टूबर को मासशिवरात्रि एवं नरक चतुर्दशी, 31 अक्टूबर को चतुर्शी एवं छोटी दीपावली, 1 अक्टूबर को महालक्ष्मी पूजन, 2 अक्टूबर को गोवर्धन धन पूजा एवं अन्नकूट, 3 अक्टूबर को भाई दूज एवं विश्र्व पूजा का पर्व मनाया जावेगा।
सिद्धता, ऐश्वर्य व लाभ शुभ लाभ श्री महालक्ष्मीजी अपने योग्य पुरुषार्थी संतानों पर कृपावंत रहती हैं। तदैव अशुभं....के अनुसार भी महालक्ष्मी पूजन सर्वदा शुभ फलकारक मन है, फिर भी प्रसंगवश परंपरा विशेष परंपरा में नीमच (म.प्र.) के विखंडित-रीक्षण के आधार पर सर्वसम्मत अनुसंधान निर्णय अपरांत लक्ष्मी पूजा उत्सव शुभ फलकारक प्रकाशित जो मंदसौर, चित्तौड और भूतपूर्व क्षेत्र में बिना किसी विशेष अंतर के सर्वत्र मान्य होंगे। यथा (1) प्रातः 6.41 से 8.04 चंचल चौघड़िया (2) प्रातः 7.50 से 10.06 वृश्चिक स्थिर नक्षत्र (3) प्रातः 8.04 से 9.27 लाभ का चौघड़िया (4) प्रातः 9.27 से 10.50 अमृत चौघड़िया (5) प्रातः 10.22 से 11.18 बृहस्पति की होरा (6) प्रातः 11.52 से 12.23 अभिजित आह्वान (7) दोप. 12.14 से 1.37 शुभ चौघड़िया (8) दोप. 1.55 से 3.37 स्थिर कुम्भ (9) दोप. 3.02 से 3.57 तक चन्द्रमा की होरा (10) सायं 4.24 से 5.47 तक चंचल चौघड़िया (11) सायं 4.47 से 6.47 तक गोधूलि वेला (12) सायं 5.47 से 8.22 प्रदोष वेला (13) सायं 6.36 से 8.34 वृषभ स्थिर तुला (14) रात 9.01 से 10.38 से लाभ का चौघड़िया (15) रात्रि 10.06 से 11.10 चन्द्र की होरा (16) अर्धरात्रि 11.50 से 12.38 निशीथ वेला (17) अर्धरात्रि के बाद 12.15 से 1.51 शुभ का चौघड़िया (18) अर्धरात्रि के बाद 1.51 से 3.28 अमृत का चौघड़िया (19) अर्धरात्रि के बाद 1.03 से 3.17 सिंह लग्न अस्तु श्री
विशेश - बृहस्पति होरा में पूजन से सद्ज्ञान, भगवत्कृपा प्राप्ति। गोधूलि वेला में पूजन से गोधन वृद्धि, अमृतपान, आरोग्यता लाभ। चन्द्र होरा में पूजन से आत्मिक शांति, प्रसन्नता योग प्रबल होते हैं। जिस प्रकार गुरू का चौघडिया शुभ,बुध का लाभ, चन्द्रमा का अमृत एवं शुक का चंचल है, ऐसे ही इनकी होरा भी शुभकारक प्रामाणिक है।
दीपावली पर्व 1 नवम्बर को ही मनाना शुभकारक
नीमच । विभिन्न पंचांगों के अवलोकन से यह प्रत्यक्ष है कि कालगणना, स्थान भेद, भौगोलिक स्थिति, अमावस्या की उपस्थिति एवं सूर्यास्त समय भिन्नता के आधार पर विचार उपरान्त यह स्पश्ट है कि इस बार दीपावली पर्व 31 अक्टूबर एवं 1 नवम्बर को मनाये जाने के योग बन रहे हैं। भारत के सभी पंचांगकर्ता विद्वानों के अलग अलग मत हैं तथा समर्थन में अपने-अपने प्रमाण भी प्राप्त हैं। दोनों ही पक्ष के गणितज्ञ ज्योतिशी अपने मत पर अडिग हैं। लेकिन भौगोलिक आधार पर कहां 31 को और कहां 1 को दीपावली मनाई जाए, यह प्रश्न विचारणीय है।
* तत्र सूर्योदयं व्याप्यस्तोत्कटं घटिकादिक रात्रिव्यापिनी दशां न संशय
अर्थात् सूर्योदय से सूर्यास्त उपरान्त 24 मिनिट या अधिक समय तक अमावस्या होने पर दीपावली
उस दिन मनाने में कोई संदेह नहीं है।
★ ★ दंडैक रजनी योगे दर्शनः स्यात्तु परेहनि। तदा विहाये पूर्वेद्युः परेहनि सुखरात्रिकाः।। पृष्ठ 300)
(निर्णय सिंधु द्वितीय परिच्छेद अर्थात् अमावस्या दोनों दिन प्रदोश व्यापिनी होने पर दूसरे दिन दीपावली पर्व मनाने का निर्देश है। इसके अनुसार जहां जहां सूर्यास्त 1 नवम्बर को 5.52 से पहले होगा वहां सूर्यास्त बाद 1 घटी या अधि एक समय तक अमावस्या रहेगी इसलिए वहां वहां 1 नवम्बर को ही दीपावली शुभकारक है। तथा जहां भी सूर्यास्त 5.52 बाद होगा वहां अमावस्या सूर्यास्त पश्चात् एक घटी से कम रहेगी इसीलिए वहां पर दीपावली 31 अक्टूबर को मनाना शुभकारक है। मानचित्र से समझना सरल है।
इस मान से सम्पूर्ण गुजरात, केरल, राजस्थान के पश्चिमी भाग, गुजरात से सटे मध्यप्रदेश के कुछ भाग, महाराश्ट, कनार्टक, तमिलनाडू के पश्चिमी भागों में दीपावली 31 अक्टूबर को व शेश भारत में 1 नवम्बर को मनाना शास्त्र सम्मत शुभकारक है। साथ ही 1 नवम्बर को स्वाति नक्षत्र के साथ ही प्रीति व आयुश्मान योग भी है। संवत् 2070 दिनांक 3.11.2013 में भी ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हुई थी। बिना किसी विवाद के दूसरे दिन दीपावली पर्व मनाया गया था।
दीपमालिका महापर्व पर व्याप्त अमावस्या तिथि में प्रातःकाल पितृ कार्य, श्राद्ध, तर्पण, ब्राम्हण भोजन आदि करना चाहिए। उसके उपरान्त लक्ष्मी पूजन का विधान है। चतुर्दशी अमावस्या योग की तुलना में अमावस्या + एकम का संयोग वृद्धिकारक शुभफलद है।