NEWS: कृति की व्याख्यानमाला संपन्न, शहर के गणमान्य व सुधीजन हुए उपस्थित, डॉ. मुरलीधर चांदनी वाला बोले- सन 1857 से 15 अगस्त 1947 तक स्वतंत्रता संग्राम में देश के साहित्यकारों का अमिट योगदान, पढ़े खबर
कृति की व्याख्यानमाला संपन्न
नीमच। सन 1857 से 15 अगस्त 1947 तक करीब 90 साल की अवधि में स्वतंत्रता संग्राम में देश के साहित्यकारों का अमिट योगदान रहा है। साहित्यकारों व कवियों ने शब्द साधना के जरिए देश के जन-जन के मन में स्वतंत्रता संग्राम की अलख जगाई और उन्हें जागृत करने का काम किया। इस कार्य के बदले देश के साहित्यकारों को अंग्रेजों की यातना झेलना पड़ी और उनकी रचनाओं को जब्त तक कर लिया गया लेकिन इसके बावजूद देश की आजादी के लिए उनकी कोशिशों में किसी भी तरह की कोई कमी नहीं आई।
यह विचार रतलाम से आए ख्यातनाम विचारक व विद्वान डॉ मुरलीधर चांदनी वाला ने व्यक्त किए। वे जिले की साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था कृति की ‘स्वतंत्रता संग्राम में साहित्यकारों का योगदान’ विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला में बोल रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक व अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की जन्म जयंती के मौके पर संस्था कृति ने 23 जुलाई रविवार की रात 8 बजे शहर के जवाहर नगर स्थित जांगिड़ ब्राह्मण समाज धर्मशाला परिसर में व्याख्यानमाला का आयोजन किया। व्याख्यानमाला की शुरुआत में मुख्य वक्ता डॉ. चांदनी वाला, कृति अध्यक्ष इंजीनियर बाबूलाल गौड़, सचिव डॉ विनोद शर्मा व कार्यक्रम संयोजक डॉ. अक्षय राजपुरोहित ने मां सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलन किया।
स्वागत भाषण कृति अध्यक्ष गौड़ ने दिया एवं कार्यक्रम की भूमिका रखते हुए अतिथि परिचय कार्यक्रम संयोजक डॉ राजपुरोहित ने दिया। कृति परिवार के मनोहर सिंह लोढ़ा, प्रकाश भट्ट, सत्येंद्र सिंह राठौर, राजेश जायसवाल व एडवोकेट कृष्णा शर्मा ने डॉ. चांदनी वाला का सम्मान कर उन्हें संस्था की ओर से स्मृति चिन्ह भेंट किया। इसके उपरांत डॉ. चांदनी वाला ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि नीमच ऐसा शहर जिसने सन् 1857 का गदर देखा ही नहीं बल्कि उसे सहा है। सन 1822 में मालवा का सबसे सशक्त शहर नीमच रहा है, और देश की आजादी में नीमच के योगदान को नकारा नहीं जा सकता।
देश की आजादी में साहित्यकारों का योगदान कभी भी कम नहीं आंका जा सकता। बकीमचंद्र चट्टोपाध्याय ने आनंद मठ के माध्यम से संन्यासियों के विद्रोह का उल्लेख किया। वंदे मातरम् की रचना की। भारतेंदु हरीशचंद्र ने भारत की दुर्दशा, अंधेर नगरी, चौपट राजा, महर्षि दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश, सुब्रह्मयण भारती ने तमिल साहित्य के जरिए अंग्रेजी शासन के खिलाफ बिगुल फूंका। पंडित श्यामजी कृष्ण वर्मा ने 72 वीरों की श्रृंखला तैयार की। अरविंद घोष व उनकी भाई वारिंद्र घोष ने अंग्रेजी यातनाओं को सहन करते हुए भी साहित्य के जरिए मां भारती की उपासना की। अरविंद की रचना भवानी भारती कालजयी है।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने वर्मा की मांडले जेल में 6 साल की अवधि में 850 पेज में गीता रहस्य लिखा जो कि धार्मिक रचना न होकर देश की आजादी के लिए एक अहम प्रयास रहा। माधव राव सप्रे, माखनलाल चतुर्वेदी, इकबाल, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, सुभद्रा कुमारी चौहान, कवि प्रदीप, मुंशी प्रेमचंद, गुरूदेव रवींद्र नाथ टैगोर, बाबू बालमुकुंद गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंश राय बच्चन सहित कई साहित्यकारों का अमिट योगदान स्वतंत्रता संग्राम में रहा है। कप्तान राम सिंह की रचना ‘कदम कदम बढ़ाए जा’ एवं श्यामलाल की रचना ‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’ ने जन-जन की जुबां पर व दिलों में जगह बनाई। वीर सांवरकर ने भी काला पानी की सजा के दौरान पोर्ट ब्लैयर की जेल में दीवारों पर कविताएं लिखी।
इस तरह समूचा स्वतंत्रता संग्राम साहित्यकारों की योगदान की कहानी खुद बयां करता है। संचालन ओमप्रकाश चौधरी ने किया एवं आभार संस्था सचिव डॉ शर्मा ने माना। व्याख्यानमाला के दौरान श्रीमती चांदनी वाला, किशोर जेवरिया, डॉ माधुरी चौरसिया, पुष्पलता सक्सेना, भरत जाजू, डॉ जीवन कौशिक, रघुनंदन पाराशर, कमलेश जायसवाल, शरद पाटीदार, नरेंद्र पोरवाल, लोकेंद्र बंसल, सत्येंद्र सक्सेना, महेंद्र त्रिवेदी, कैलाश बाहेती, रमेश मोरे, केके टांक, हरिवल्लभ मुच्छाल सहित अन्य विशेष रूप से मौजूद रहे।
सकल ब्राह्मण समाज कल्याण समिति ने किया सम्मान-
सकल ब्राह्मण समाज कल्याण समिति नीमच के अध्यक्ष शैलेष जोशी व सचिव दिलीप शर्मा सहित अन्य पदाधिकारियों ने व्याख्यानमाला के दौरान डॉ. मुरलीधर चांदनी वाला का शाल-श्रीफल व भगवान श्री परशुराम का चित्र देकर सम्मान किया। अन्य समाजजन विशेष रूप से मौजूद रहे।