BIG NEWS : जैसलमेर में 100 मील बॉर्डर रन आयोजित, नीमच के राकेश गर्ग ने लिया हिस्सा, कुछ यूं बढ़ाया क्षेत्र का गौरव, देखेंगे तो आप भी कहेंगे WOW...! पढ़े खबर
जैसलमेर में 100 मील बॉर्डर रन आयोजित
रिपोर्ट- मुकेश पार्टनर
नीमच। प्रतिष्ठित सर्राफा व्यवसाई प्रकाश चंद मल्लूराम गर्ग के सुपुत्र और सरस्वती शिशु मंदिर के पूर्व छात्र राकेश गर्ग (स्वर्णम) ने जैसलमेर मे होने वाली 100 मील (161 कि.मी.) बॉर्डर रन में हिस्सा लिया और उसे 23 घंटे 54 मिनट पुरा करके अपने क्षैत्र का गौरव बढाया, राकेश अपने छात्र जीवन से ही विभिन्न खेलो मे रुचि रखते थे, स्कूल के लिए कई बार 100 मीटर 400 मीटर दौड़ और खो-खो जैसी प्रतियोगिताओं में स्कूल का संभाग स्तर तक सफ़ल प्रतिनिधित्व कर चुके है।
हाल ही में 2024 में जयपुर मैराथन 4 घंटे से कम समय में पूरा करना, लद्दाख (खारदुंगला चैलेंज) में 72 किमी, और दक्षिण अफ्रीका में कॉमरेड 86 किमी रन को पूरा करना, वास्तव में अविश्वसनीय प्रतिभा का उदाहरण है। और अब जैसलमेर में बॉर्डर रन एक उल्लेखनीय कार्य है। राकेश ने जोभी राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय दौड़ में भाग लिया है उनमें से प्रत्येक अनोखी है और अपने तरीके से विशेष है। जयपुर की तेज़-तर्रार मैराथन, खारदुंगला का कम आक्सीजन और कठिन पहाङी इलाका और बॉर्डर रन सहनशक्ति की परीक्षा थी।
गर्ग के लिए बॉर्डर रन एक चुनौतीपूर्ण और यादगार अनुभव था, जिसमें जैसलमेर की रेगिस्तान की गर्मी, आश्चर्यजनक रेतीले उतार चढाव और सांस्कृतिक समृद्धि दौड़ की जटिलता को बढा रही थी। बॉर्डर रन (100 मील) भारत में सबसे अनोखी और चुनौतीपूर्ण अल्ट्रामैराथन में से एक है, इसके कठोर और गंभीर पर्यावरणीय कारकों के कारण अनुभवी धावकों को भी मुश्किल होती हैं। राजस्थान के जैसलमेर के कठोर, अविश्वसनीय रेगिस्तानी इलाके में आयोजित, यह सिर्फ एक दौड़ नहीं है, बल्कि यह लोंगेवाला 1971 की लड़ाई में भारतीय सेना के सर्वोच्च बलिदान और अद्वितीय वीरता के लिए एक श्रद्धांजलि है। पंजाब रेजीमेंट की 23वीं बटालियन के 120 जवानों ने पूरी रात संघर्ष किया, जब तक कि उन्हें अगले दिन मदद नहीं भेजी। जब अस्तित्व का सवाल था, तो उन्होंने जीत के साथ इसका जवाब दिया- और अब, उस विरासत का सम्मान करने के लिए वहाँ गए थे।
बार्डर रन शनिवार दोपहर 12 बजे शुरू होती है, जिसमें धावक दोपहर की तेज धूप में होते हैं। जैसलमेर की रेगिस्तानी जलवायु दिन के दौरान चिलचिलाती गर्मी के लिए जानी जाती है और रात में तापमान में भारी गिरावट आती है। जैसे-जैसे शाम होती है, रेगिस्तान का तापमान विपरीत होता जाता है। तापमान एकल अंक तक गिर जाता है। रात को रोशनी एकमात्र चंद्रमा से आती है, जो रेत पर पूरी छाया डालती है, और अकेलेपन व मानसिक थकान की भावना को बढाती है।
भूभाग लगभग समतल, लेकिन आसान नहीं था, असली लड़ाई अंतिम 40 किलोमीटर में शुरू होती है, जब रेतीले उतार-चढाव आते है, तब थके हुए पैरों के लिए और भी कठिन हो जाता है। रेतीले उतार-चढाव का अंतहीन लगने वाला मार्ग धावकों को ऐसा महसूस होता है जैसे वे लगातार रेगिस्तान के विशाल खालीपन से जूझ रहे हों। गर्ग के साथ मुंबई के अल्ट्रास रनिंग ग्रुप के 22 सदस्यों व हैप्पी फीट चैंपियंस के 4 सदस्यों ने इस दौड़ में हिस्सा लिया।
जैसलमेर में बॉर्डर रन को पूरा करना राकेश का लंबी दौड़ का अंतिम सपना था जिसे पूरा करना एक उल्लेखनीय उपलब्धि है, रेगिस्तान शांत हो सकता है, लेकिन राकेश की इस उपलब्धि की यादें दौड़ खत्म होने के बाद भी लंबे समय तक गूंजती रहेंगी। इसी साल में लद्दाख की मैराथन और बार्डर रन पूरा करने का संकल्प ले कर पूरे वर्षभर भरसक प्रयास और प्रैक्टिस रन करके इस मुकाम को हासिल किया।