DUSSEHRA 2024- 51 फिट ऊंचाई की रावण प्रतिमा,है यंहा का दामाद,सामने से घूंघट में निकलती महिलाये, होती है दशहरे पर पूजा,निकलती राम रावण की सेना,मांगी जाती माफ़ी,पढ़े नरेंद्र राठौर की खबर

51 फिट ऊंचाई की रावण प्रतिमा,है यंहा का दामाद,

DUSSEHRA 2024- 51 फिट ऊंचाई की रावण प्रतिमा,है यंहा का दामाद,सामने से घूंघट में निकलती महिलाये, होती है दशहरे पर पूजा,निकलती राम रावण की सेना,मांगी जाती माफ़ी,पढ़े नरेंद्र राठौर की खबर

मंदसौर। जिले को रावण का ससुराल माना जाता है। क्यूंकि मंदसौर उसकी पत्नी मंदोदरी का मायका। रावण  यंहा का दामाद था। यहां के खानपुरा क्षेत्र में रुण्डी नामक स्थान पर रावण की स्थापित प्रतिमा जिसके 10 सिर,ऊंचाई 51 फिट।  दामाद होने के कारण इस प्रतिमा के सामने महिलाएं पहुंचती हैं तो घूंघट डाल लेती हैं।

विजयादशमी पर  देश के विभिन्न हिस्सों में दशहरे के मौके पर रावण के पुतलों का दहन किया जाता हैं। लेकिन मध्य प्रदेश में कई स्थान ऐसे हैं। जहां रावण का दहन नहीं होता। बल्कि उसकी पूजा की जाती है ऐसा मध्य्प्रदेश के मंदसौर में होता है। इस जिले को दशपुर के नाम से पहचाना जाता था। रावण की बुद्धिभ्र्स्ट होने की वजह से प्रतीक के रूप में गधे का सिर लगा रखा हैं।

स्थानीय लोगों के अनुसार, दशहरा के दिन यहां के नामदेव समाज के लोग प्रतिमा के समक्ष उपस्थित होकर पूजा-अर्चना करते हैं। उसके बाद राम और रावण की सेनाएं निकलती हैं। रावण के वध से पहले लोग रावण के समक्ष खड़े होकर क्षमा-याचना मांगते हैं। वे कहते हैं, ‘आपने सीता माता का हरण किया था, इसलिए राम की सेना आपका वध करने आई है।’

उसके बाद प्रतिमा स्थल पर अंधेरा छा जाता है। और फिर उजाला होते ही राम की सेना उत्सव मनाने लगती है। स्थानीय लोग बताते हैं कि मान्यता है कि इस प्रतिमा के पैर में धागा बांधने से बीमारी नहीं होती। यही कारण है कि अन्य अवसरों के अलावा महिलाएं दशहरे के मौके पर रावण की प्रतिमा के पैर में धागा बांधती हैं। कई महिलाएं संतान सुख के लिए भी मन्नत मांगी जाती हैं।

कुछ लोग परंपराओं का पालन करते हुए उसे आज पूज रहे हैं। मंदसौर को रावण की ससुराल माना जाता है, इसीलिए लोग उसे पूजते हैं। दामाद कैसा भी हो, उसका ससुराल में तो सम्मान होता ही है। रावण की पूजा तो होती है, मगर इसके ऐतिहासिक और धार्मिक ग्रंथों में उदाहरण कहीं नहीं मिलते। सब कुछ परंपराओं के अनुसार चलता आ रहा है। सुबह पूजा अर्चना के बाद शाम को गोधुली बेला में रावण का दहन किया जाता हैं। माना जाता हैं की ये प्रतिमा लगभग 200 साल पुरानी हैं। इस प्रतिमा को कई बार प्राकतिक आपदा के कारण प्रतिमा को रिपेयरिंग भी कर चुके हैं।