EXCLUSIVE: श्रीराम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा, 75 वर्षीय डॉ. दुर्गालाल ने बताई अपनी कहानी, रामलला के आगमन के लिए 1990 से लगातार फेर रहे माला, लिखे 1 करोड़ 50 लाख से ज्यादा राम नाम, पढ़े ये खबर
श्रीराम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा

नीमच। रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए अयोध्या नगरी सजकर तैयार है। बस इंतजार प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम का, जो सोमवार को होगी। बरसों के इंतजार के बाद नवनिर्मित भव्य राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला की मूर्ति विराजित होगी। राम मंदिर को लेकर पूरे देश में खुशी की लहर है। लोगों के जेहन में अलग-अलग तरह की यादें हैं, जो राम मंदिर से जुड़ी हुई हैं। किसी ने राम जन्मभूमि आंदोलन में अपनों को खो दिया तो किसी के जेहन से आज तक आंदोलन का मंजर नहीं निकल पाया है।
इसी बीच नीमच जिले के छोटे से गांव रायसिंहपूरा के 75 वर्षीय बुजुर्ग ने राम मंदिर को लेकर कुछ यादें साझा की। डॉ. दुर्गालाल कछावा बताते है कि, जब 1990 में राम मंदिर को लेकर आंदोलन हुआ, ओर यूपी सरकार ने कार सेवकों पर दनादन गोलियां दागी जब कई कार सेवकों की मौत हो गई। जब में 40 साल का था, उस समय ऐसी कोई सुविधा नही थी। जब मुझे जानकारी मिली कि राम मंदिर को लेकर आंदोलन में कई गोलियां चल रही है कारसेवकों की मौत हो रही है। तब मेरी आँखों मे आंसू आ गए और में बैठे बैठे श्रीराम को याद करने लग गया, ओर मन में विचार भी आया कि अब में श्रीराम का मंदिर नही देख पाऊंगा, पर मेरी आत्म ने भगवान से यही प्रार्थना की श्री राम यह आँखे आपके दर्शन जरूर करेगी।
मैने उसी दिन से माला फेरनी शुरू कर दी और मन मे यही ठानी जब अयोध्या में श्रीराम का मंदिर बनेगा तब तक यह माला फेरता रहूंगा ओर श्रीराम का नाम लेता रहूंगा। डॉ. दुर्गालाल कछावा बताते है 1990 से में लगातार माला फेर रहा हु ओर श्रीराम का नाम लेकर आयोध्या में मंदिर बने इसकी प्रार्थना करता रहा। मुझे माला फेरते हुए 35 साल हो गए। ओर फिर मेने अयोध्या में श्रीराम विराजन हो इसके लिए मेने 2010 से श्रीराम का नाम लिखने लगा। जब गांव में लाइट भी नही आती थी तो में चिमनी में श्रीराम का नाम लिखता रहा मेने 52 कॉपियों में 1 करोड़ 50 लाख 31 हजार 551 नाम लिखे।
जब 2016 तक यह राम नाम मेने पूर्ण कर लिए थे। जब मैने राम नाम की शुरुआत की थी तब यह सोचा था कि अयोध्या में श्रीराम का मंदिर बन जायेगा तो यह राम नाम अयोध्या में श्रीराम को समर्पित करूँगा, पर ऐसा हुआ नही ओर 2016 तक मंदिर का निर्माण नही हुआ। धीरे-धीरे में भी बूढ़ा हो चला था पता नही कब भगवान का बुलावा आ जाए इसलिये इन राम नाम को चारभुजा नाथ मंदिर राजस्थान में भगवान को समर्पित किया, फिर भी मेरा मन विचलित था क्योंकि अयोध्या में श्री राम विराजमान नही हुए थे, ओर मेरी बूढ़ी आंखो को इसी बात का इंतजार था कि मरने से पहले मेरे राम लला की प्राण प्रतिष्ठा देख लू, भगवान ने मेरी यह ईच्छा भी पूरी कर दी मेंने इसी जन्म में मेरे राम भगवान को मंदिर में देख लिया।
मुझे मरने से पहले ही स्वर्ग मिल गया। बताया कि बात वर्ष 1989 की है। तब अयोध्या में रामलला के मंदिर निर्माण के लिए गांव-गांव में अयोध्या से आई रामशिला का पूजन अनुष्ठान चल रहा था। राम शिला नीमच जिले में भी आई थी जिसमे एक शिला गाँव रायसिंह पूरा में भी आई जिसकी अगुवाई भी डॉ. दुर्गालाल कछावा व इनके साथियो ने की थी। राम शिला को गाँव मे घुमाया था और सवा सवा रु राम मंदिर के नाम से इकठ्ठा किया था। ओर घर घर शिला का पूजन किया था।