NEWS : तेंदूपत्ता दे रहा आदिवासी लोगों को रोजगार,40 फीसदी उत्पादन केवल प्रतापगढ़ जिले से,पढ़े खबर.........
तेंदूपत्ता दे रहा आदिवासी लोगों को रोजगार,
प्रतापगढ़,में वन विभाग की ओर से जंगल में तेंदूपत्ता तोड़ने के दिए जाने वाले ठेके से आदिवासी अंचल के गरीब परिवार के लोगों को रोजगार मिलता है, इसके साथ ही वन विभाग की ओर से आवंटित किए गए खेतों से विभाग की आय में भी बढ़ोतरी होती है, हालांकि दो वर्ष से लगातार आय में कमी दर्ज की जा रही, इस बार तेंदुपत्ता की मांग कम होने के कारण ठेका भी 9 करोड़ 41 लाख रुपए का हुआ है, हालांकि आंकड़ा पिछले साल के मुकाबले कम है, लेकिन फिर भी आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के लोगों को तेंदूपत्ता के कारण बड़े स्तर पर रोजगार मिल रहा है,
दो वर्षों से मांग में कमी,
विभागीय आंकड़ों के अनुसार गत दो वर्ष से आय कम हो रही है, इसका कारण तेंदूपत्ता की मांग में कमी होना बताया गया है, ऐसे में वन विभाग की राजस्व आय में कमी हो रही है, पिछले दो वर्ष से तेंदूपत्ता का उठाव नहीं होने से यह असर हो रहा है, वहीं इस वर्ष तेंदुपत्ता की मांग तो नहीं बढ़ी है लेकिन क्षेत्र के लोगों को काम जरूर मिलेगा,
पिछले पांच वर्षों की स्थिति
वर्ष आय (राशि करोड़ में)
2018-19 13.61
2019-20 4.25
2020-21 3.16
2021-22 13.88
2022-22 9.41
प्रदेश समेत अन्य राज्यों में गत तीन सालों में तोड़े गए तेंदूपत्ता का उठाव पिछले साल हुआ, इस वर्ष वन विभाग की ओर से दिए गए तेंदूपत्ता तुड़ाई के ठेकों से आय कम है, प्रतापगढ़ जिले में वर्ष 2019-20 में हुए ठेके से 4 करोड़ 25 हजार रुपए की आय हुई थी, जबकि 2020-21 में यह आंकड़ा 3 करोड़ 17 लाख तक ही सिमट गया, वहीं 2021-22 में यह ठेका 13 करोड़ 88 लाख रुपए का हुआ था, इस साल 2022-23 में यह ठेका 9 करोड़ 41 लाख पर जाकर रुक गया है,
हजारों लोगों को मिलता है रोजगार,
तेन्दूपत्ता संग्रहण के लिए बड़ी संख्या में श्रमिकों की जरूरत होती है, ऐसे में इससे हजारो की संख्या में स्थानीय श्रमिकों को रोजगार मिलता है, पिछले वर्ष प्रतापगढ़ वन मण्डल से 85 हजार 548 मानक बोरे निकले थे, जिसमें 1100 रुपए प्रति मानक बोरे के दर से श्रमिकों को भुगतान किया गया था, इस वर्ष प्रति मानक बोरे की संग्रहण दर भी 1100 से 1200 रुपए प्रति मानक बोरा किया गया है, आदिवासी बहुल क्षेत्र में इतना रोजगार लगभग ही कोई गतिविधिया प्रदान करती हो, तेन्दूपत्ता की नीलामी से प्रतागपढ़ जिले से राजस्थान में सबसें ज्यादा राजस्व की प्राप्ति हुई है,
तेंदुपत्ता से अधिकांश आय प्रतापगढ़ वन मंडल से,
प्रदेश में कुल उत्पादन होने वाले में से 40 प्रतिशत तेंदूपत्ता प्रतापगढ़ के जंगलों से होता है, जबकि 60 प्रतिशत उत्पादन प्रदेश के अन्य जंगलों में होता है, यहां के जंगलों में कई प्रजातियों के पेड़ पाए जाते हैं, इनमें तेंदू के पेड़ भी हैं, ऐसे में यहां तेंदूपत्ता का उत्पादन भी अधिक होता है, इस वर्ष तेंदूपत्तों के ठेकों में प्रतापगढ़ में 3 करोड़ 17 लाख रुपए के ठेके हुए है,
प्रदेश का 40 प्रतिशत उत्पादन प्रतापगढ़ जिले से,
प्रदेश में कुल उत्पादन होने वाले में से 40 प्रतिशत तेंदूपत्ता प्रतापगढ़ के जंगलों से होता है, जबकि 60 प्रतिशत उत्पादन प्रदेश के अन्य जंगलों में होता है, यहां के जंगलों में कई प्रजातियों के पेड़ पाए जाते हैं, इनमें तेंदू के पेड़ भी हैं, ऐसे में यहां तेंदूपत्ता का उत्पादन भी अधिक होता है, प्रतापगढ़ जिले में जैव विविधता के कारण जंगल काफी समृद्ध है, ऐसे में यहां टीमरू के पेड़ भी काफी पाए जाते है, इनके पत्तों से बीड़ी बनाई जाती है, वन विभाग के सूत्रों के अनुसार यहां जिले में प्रदेश के करीब 40 प्रतिशत ठेके से आय प्रतापगढ़ जिले से होती है,
जिले में यहां से होता है पत्ता संग्रहण,
प्रतापगढ़ जिले में सभी तरफ जंगल है, ऐसे में ठेके भी जिले के 20 इकाइयों से होते है, इसमें बांसी, लालपुरा, लसाड़िया, छोटीसादड़ी, सियाखेड़ी, साठोला, देवगढ़, धमोतर, दलोट, रामपुरिया जानागढ़, प्रतापगढ़, खूंता मूंगाणा, कातिजाखेड़ा भरकुंडी, लोहागढ़ अंबाव, झडोली मय अखिया मानपुर, मांडवी पीपल्या, भणावता चरी, जायखेड़ा, पीपलखूंट, डूंगलावाणी इकाई के ठेके प्रति वर्ष दिए जाते है,