शरद पूर्णिमा: अमृत वर्षा की रात्रि और आत्मजागरण का संदेश, पौराणिक प्रसंग और भक्ति की गहराई, चंद्रमा की सोलह कलाएं, और यह है नवाचार, पढ़े रचनाकार जुही जैन की कलम से
शरद पूर्णिमा: अमृत वर्षा की रात्रि और आत्मजागरण का संदेश

नीमच। भारतीय संस्कृति में हर पर्व केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन दर्शन है, जो हमें आत्मा, प्रकृति और ईश्वर से जोड़ता है। इन्हीं में से एक दिव्य रात्रि है, शरद पूर्णिमा, जिसे अमृत वर्षा की रात्रि कहा जाता है। यह वह रात है जब चाँद अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होकर आकाश में अमृत बरसाता है और सम्पूर्ण सृष्टि पर शांति, प्रेम और प्रकाश की वर्षा होती है। यह रात्रि केवल चंद्रमा की नहीं, बल्कि मानव चेतना की पूर्णता की प्रतीक है। कहा जाता है, “जिसने शरद पूर्णिमा की चाँदनी को महसूस किया, उसने जीवन की मधुरता को छू लिया।”
शरद पूर्णिमा का आध्यात्मिक रहस्य- शरद ऋतु के आगमन के साथ वातावरण शुद्ध, निर्मल और दिव्यता से भर जाता है। इस दिन का चंद्रमा अपने सम्पूर्ण वैभव में होता है, षोडश कलाओं (16 कलश) से युक्त। यह कलाएँ केवल चंद्रमा की सुंदरता नहीं, बल्कि मानव आत्मा की पूर्णता के सोपान हैं।
चंद्रमा की सोलह कलाएँ और उनका अर्थ-
1. अमृत कला – जो जीवन को अमरत्व देती है।
2. मनोमय कला – मन की शुद्धता और शांति का प्रतीक।
3. प्राण कला – शरीर में नई ऊर्जा का संचार करती है।
4. अन्नमय कला – पोषण, स्वास्थ्य और संतुलन का भाव।
5. विज्ञानमय कला – ज्ञान और विवेक की शक्ति।
6. आनंदमय कला – आत्मिक प्रसन्नता और उत्साह।
7. सत्य कला – सत्य के मार्ग पर दृढ़ रहने की प्रेरणा।
8. श्रद्धा कला – विश्वास और भक्ति की गहराई।
9. निष्ठा कला – समर्पण और दृढ़ता का भाव।
10. कृपा कला – दया और करुणा का अमृत।
11. माया कला – सृष्टि की सृजनात्मक शक्ति।
12. शक्ति कला – साहस, ओज और आत्मबल की ज्योति।
13. तेजस् कला – आभा और उज्ज्वलता की प्रेरणा
14. प्रेम कला – सर्वभूतों में एकत्व का अनुभव।
15. ज्ञान कला – आत्मा के सत्य का बोध।
16. पूर्णता कला – जीवन के समग्र संतुलन और शांति की अवस्था।
जब चंद्रमा इन सोलह कलाओं से युक्त होकर प्रकट होता है, तब वह केवल आकाश का अलंकार नहीं रहता। वह अमृत का दूत बन जाता है। पुराणों में कहा गया है। शरद पूर्णिमायां चंद्रमः षोडशकलोपेतः अमृतसमान किरणैः भूमंडले वर्षति। अर्थात इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ अमृतमयी किरणें पृथ्वी पर बरसाता है।
पौराणिक प्रसंग और भक्ति की गहराई-
श्रीकृष्ण की रासलीला: शरद पूर्णिमा की चाँदनी में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज की गोपियों संग महा रास किया — यह केवल नृत्य नहीं था, यह आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक था। उस रात्रि में प्रेम, त्याग और भक्ति का ऐसा संगम हुआ कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड भी विभोर हो उठा।
माँ लक्ष्मी की जागरण रात्रि: कहा जाता है कि इस रात्रि में माँ लक्ष्मी पृथ्वी पर उतरती हैं और देखती हैं — “कौन जाग रहा है, कौन कर्मरत है।” जो व्यक्ति भक्ति, साधना या सत्कर्म में जागा रहता है, उस पर देवी की कृपा बरसती है। इसी कारण इसे को-जागरी पूर्णिमा कहा जाता है।
खीर और अमृत का रहस्य: इस रात चाँदनी में रखी खीर केवल भोजन नहीं, बल्कि अमृत का प्रतीक होती है।
जब दूध या खीर को खुले आकाश के नीचे रखा जाता है, तो उसमें चंद्रमा की शीतल किरणों का स्पर्श औषधीय तत्व भर देता है। यह शरीर को ठंडक, मन को शांति और आत्मा को सुकून देती है।
वैज्ञानिक और प्राकृतिक दृष्टि से विज्ञान भी मानता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्र किरणों में विशेष ऊर्जा होती है। इस दिन तापमान, आर्द्रता और वातावरण का संतुलन ऐसा होता है कि यह शरीर की कोशिकाओं को सक्रिय करता है। यह एक प्राकृतिक डी-टॉक्सिफिकेशन प्रक्रिया है — जो मन और शरीर दोनों को शुद्ध करती है।
कलियुग में शरद पूर्णिमा का अर्थ- आज जब जीवन भागदौड़, तनाव और कृत्रिमता से भरा है, तब शरद पूर्णिमा हमें याद दिलाती है कि मनुष्य का असली सुख बाहरी नहीं, भीतर है। यह रात्रि हमें सिखाती है कि आत्मचिंतन, मौन और साधना ही आधुनिक मनुष्य की वास्तविक आवश्यकता है।
इस दिन हमें करना चाहिए-
ध्यान और मौन साधना
दान, सेवा और कृतज्ञता
परिवार संग आराधना और भजन
प्रकृति के सान्निध्य में समय बिताना
किसी एक सकारात्मक संकल्प की शुरुआत
शरद पूर्णिमा के नवाचार-
1. आयोजन: चाँदनी के नीचे समूह ध्यान सत्र।
2. अभियान: खीर बाँटने की परंपरा को सेवा कार्यक्रम बनाना।
3. उत्सव: वृक्षारोपण, दीपदान, स्वच्छता अभियान।
4. सांस्कृतिक रास संध्या: भक्ति संगीत, नृत्य और भारतीय संस्कृति का उत्सव।
5. कार्यक्रम: एक घंटा मौन रहकर आत्म-संवाद का अभ्यास
शरद पूर्णिमा की चाँदनी हमें यह सिखाती है कि, अंधकार कितना भी गहरा हो, यदि भीतर प्रकाश है तमार्ग स्वयं प्रकाशित होता है।” यह रात्रि केवल चाँद की नहीं, आत्मा की पूर्णता की रात्रि है। जो इस रात आत्मिक रूप से जागता है, उसके जीवन में लक्ष्मी (संपन्नता), सरस्वती (ज्ञान) और शक्ति (साहस) तीनों का वास होता है। इस कलियुग में जब मनुष्य भौतिकता में खो गया है, तब शरद पूर्णिमा हमें याद दिलाती है, चंद्रमा बनो — शांत रहो, उज्ज्वल रहो और सबके जीवन में प्रकाश फैलाओ।” ????
रचनाकार – जुही जैन (शिक्षिका, लेखिका एवं भारतीय संस्कृति की संवाहीका)