BIG NEWS : नीमच की पहचान का एक अध्याय काका साहब संपतलाल पटवा, भाजपा की बुनियादी संरचना अपने बल पर की तैयार, साथ दिया तो पूरा, और दूर हो गए तो पूर्ण रूप से, पढ़े विश्व देव शर्मा की कलम से

नीमच की पहचान का एक अध्याय काका साहब संपतलाल पटवा

BIG NEWS : नीमच की पहचान का एक अध्याय काका साहब संपतलाल पटवा, भाजपा की बुनियादी संरचना अपने बल पर की तैयार, साथ दिया तो पूरा, और दूर हो गए तो पूर्ण रूप से, पढ़े विश्व देव शर्मा की कलम से

नीमच। शहर में कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो समय के साथ सिर्फ़ नाम नहीं रहते, वे शहर की पहचान बन जाते हैं। स्व. संपतलाल पटवा ‘काका साहब’ उसी विरले वर्ग में थे। पद, परिस्थिति, काल-कुछ भी उनके प्रभाव को कम नहीं कर पाया। उनकी वाणी, उनका अनुशासन और उनका निर्णय, तीनों एक साथ मिलकर उन्हें एक अलग ही ऊँचाई देते थे। काका साहब का नाम नीमच में नज़दीकी और दूरी दोनों का पैमाना माना जाता था। लोग अक्सर अनकहे ही एक व्यक्ति के कद का अंदाज़ इस बात से लगा लेते थे कि उसका काका साहब से कितना संबंध है। 

राजनीति, समाज या स्थानीय संरचनाएँ—अक्सर सारे तार कहीं न कहीं उनसे होकर गुजरते थे। कौन कहाँ खड़ा होगा, किसके हिस्से क्या भूमिका आएगी—यह अंतिम निर्णय वही करते थे, और एक बार उन्होंने जो तय कर दिया, वह फिर नहीं बदलता था। वे समझौते के पक्षधर नहीं थे। जो सोच लिया—वह अंतिम। जो कह दिया—वह निभाना ही है। और जो मन से उतर गया—वह लौटकर नहीं आता। ऐसे लोग राजनीति में अब दुर्लभ होते जा रहे हैं, और काका साहब उनमें एक प्रमुख नाम थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे सफल व्यवसायी भी रहे, दूरदर्शी संपादक भी, और भाजपा संगठन के निर्णायक स्तंभ भी। 

भाजपा के प्रथम जिला अध्यक्ष के रूप में उन्होंने दिग्विजय सिंह के शासनकाल जैसे कांग्रेस के मजबूत दौर में भी नीमच भाजपा की बुनियादी संरचना अपने बल पर तैयार की। विपक्ष में रहते हुए संगठन को ज़िंदा रखना सरल नहीं था, पर उस समय भी नीमच में उनका रुतबा अलग ही था—उनकी बात सुनी भी जाती थी और मानी भी। काका साहब की एक विशिष्ट खूबी थी—उनका ‘दो ध्रुवों’ में स्वयं उपस्थित रहना। वे हमेशा अपने ध्रुव पर अडिग खड़े रहते थे—स्पष्ट, स्थिर और अपने निर्णय पर दृढ़। और जो उनके विचार, उनकी कार्यशैली या उनके निर्णय से सहमत न हों—वे स्वतः ही दूसरे ध्रुव पर दिखते थे। यह ध्रुव उन्होंने बनाए नहीं; उनका मजबूत और स्पष्ट व्यक्तित्व ही यह दो ध्रुव तय कर देता था। सत्ता हो या विपक्ष, संगठन की रणनीति हो या सामाजिक निर्णय—जहाँ काका साहब खड़े हों, वहीं पहला ध्रुव स्थापित हो जाता था, और दूसरा उन लोगों से बन जाता था जिनका मत भिन्न हो। 

यही उनकी वह अनोखी विशेषता थी जिसने उन्हें साधारण नेताओं की भीड़ से अलग करके “काका साहब” बनाया। उनकी वाणी में सजावट नहीं थी, पर स्पष्टता की शक्ति भरपूर थी। वे किसी को भ्रम में नहीं रखते थे। सम्बंध निभाने में भी वे एक रेखीय थे। साथ दिया तो पूरा दिया, और दूर हो गए तो पूर्ण रूप से दूर। जीवन के छोटे पहलुओं में भी वे उतने ही विशेष थे। उनका कचोरी-दही का आग्रह नीमच में आज भी प्रेम की तरह याद किया जाता है। कठोरता और अपनापन—दोनों का अद्भुत संगम उनके स्वभाव में दिखता था। व्यक्तिगत रूप से मैं उनसे कई बातों में सहमत भी रहा, असहमत भी। लेकिन उनकी दृढ़ता, उनका आत्मविश्वास और उनके निर्णय लेने की क्षमता को न स्वीकारना संभव नहीं था। आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं, यह मानना कठिन है कि काका साहब जैसा व्यक्तित्व अब स्मृतियों में दर्ज हो चुका है।

काका साहब, ईश्वर आपको शांति प्रदान करे। आपकी शैली, आपका साहस और आपकी अनुशासित जीवन-धारा—नीमच के लिए आने वाले समय तक एक मार्गदर्शक रहेगी। आप केवल एक नाम नहीं थे; आप नीमच की पहचान का एक पूरा अध्याय थे।

विनम्र श्रद्धांजलि।